बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञान बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- किशोरवस्था में पहचान विकास से आप क्या समझते हैं?
अथवा
किशोरावस्था के दौरान पहचान कैसे विकसित होती है?
अथवा
किशोरावस्था में पहचान विकास की समस्याएँ कौन-कौन सी हैं ?
उत्तर -
किशोरावस्था विकास की एक क्रान्तिक अवस्था है। इस अवस्था में बालक के शारीरिक और मनोवैज्ञानिक गुणों में परिवर्तन प्रौढ़ावस्था की दिशा में होते हैं। अनेक विद्वानों ने किशोरावस्था की पहचान विकास की अवधारणा को निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित किया है-
“किशोरावस्था में पहचान विकास वह अवस्था है जिसमें एक विकासशील व्यक्ति बाल्यावस्था से परिपक्वता की ओर बढ़ता है।" -जर्सील्ड के अनुसार
“किशोर ही वर्तमान की शक्ति और भावी आशा को प्रस्तुत करता है। -क्रो एण्ड क्रो के अनुसार
उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर कह सकते हैं कि किशोरावस्था वयः सन्धि के बाद की वह अवस्था है जिसमें व्यक्ति की शारीरिक और मानसिक वृद्धि पराकष्ठा या अन्तिम रूप पर पहुँचता है। इस अवस्था में व्यक्ति में आत्मा - उत्तरदायित्व का स्थापन होता है।
नेतृत्व - नेतृत्व के लिए आवश्यक है कि बालक में समूह के बालकों की अपेक्षा कुछ अधिक और श्रेष्ठ गुण हों तथा इन गुणों की समूह के अन्य सदस्यों द्वारा प्रशंसा की जा रही हो। सामाजिक कार्यक्रमों में नेता अन्य सदस्यों की अपेक्षा अधिक क्रियाशील दिखलाई पड़ते हैं। किशोरवस्था में बालक-बालिकाएँ यह पसन्द करते हैं कि उनका नेता देखने में अच्छा, स्टाइल वाला, अच्छे पहनावे वाला, अधिक बुद्धि वाला, अधिक शिक्षा वाला और अधिक परिपक्व होना चाहिए। किशोरावस्था में नेताओं में अनेक गुण पाए जाते हैं जैसे- विश्वसनीयता, वफादारी, बहिर्मुखता, अनेक रुचियाँ, आत्मविश्वास, निर्णय गति, खेल की भावना, सामाजिकता, विनोदीभाव, मौलिकता, दक्षता, अनुकूलता, सहयोग, सजीवता, दृढ़ाग्रही और कुशलता” आदि । जहाँ पन्द्रह-सोलह वर्ष की अवस्था के लड़के-लड़कियाँ समूह में दोनो ही रहते हैं, वहाँ लड़कियाँ लड़कियों को और लड़के लड़कों को नेता चुनना पसंद करते हैं।
सामाजिक स्वीकृति - कुछ किशोरों को अपने समूह और समाज में अधिक प्रतिष्ठा और स्वीकृति प्राप्त होती है तथा अन्य को सामान्य या कम होती है। किशोरावस्था के प्रारम्भ से ही किशोर यह समझने लग जाते है कि समूह और समाज के अन्य सदस्य उसे कितना और किस प्रकार चाहते हैं। लड़कों की अपेक्षा लड़कियाँ समूह में अपना स्थान और प्रतिष्ठा शीघ्र पहिचान लेती हैं। समूह में जो बालक अपनी स्थिति का मूल्यांकन सही करते हैं, उनका समायोजन सामान्य या अच्छा होता है। दूसरी ओर जो बालक अपने समूह में अपनी स्थिति का अति या अल्प मूल्यांकन करते हैं, उनका उस समूह में समायोजन दूषित होता है। जिस बालक को सामाजिक स्वीकृत जितनी ही अधिक प्राप्त होती है। वह उतना ही अधिक सहयोगी, बहिर्मुखी, सहायता करने वाला, उदार, सही बोलने वाला, कम क्रोधी, उत्तरदायित्व वाला, नियमों का पालन करने वाला होता है। अध्ययनों में यह देखा गया कि जिन किशोरों को जितनी ही अधिक सामाजिक स्वीकृति प्राप्त होती है वे उतने ही अधिक बढ़ जाते हैं। इसके सम्बन्ध में हरलॉक ने लिखा है, “कि सामाजिक रूप से स्वीकृत व्यक्ति में कुछ लक्षण पाए जाते हैं जैसे - निष्कपटता, दूसरों में रुचि, दूसरों को महत्व, आत्म सम्मान, आत्मविश्वास, समूह द्वारा स्वीकृत क्रियाकलापों में सक्रिय रूप से भाग लेना, सामान्यतया समयोजित व्यक्ति प्रतिमान।
किशोरावस्था में पहचान विकास की समस्याएँ
किशोरावस्था को समस्याओं की आयु इसलिए कहा गया है कि बालक अपने माता-पिता, संरक्षकों और अध्यापकों आदि के लिए एक समस्या होती है तथा साथ ही साथ वह अपनी नई विकास अवस्था की भूमिका के साथ समायोजन नहीं कर पाता है। अत: उसमें चिन्ता, उत्सुकता अनिश्चितता और भ्रान्ति के लक्षण उत्पन्न हो जाते है। यह किसी न किसी रूप में उसके लिए समस्या ही है। इनकी समस्याओं में पर्याप्त भागों में वैयक्तिक भिन्नताएँ भी पायी जाती हैं।
किशोरावस्था में आयु जैसे-जैसे बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे किशोरों की समस्याएँ जटिल और अधिक जटिल होती जाती है। किशोरवस्था के अन्त तक अधिकांश समस्याएँ धन, सेक्स या शैक्षिक उपलब्धि के सम्बन्ध में ही होती हैं। अधिक आयु के किशोरों के लिए ये समस्याएँ अधिक गम्भीर होती हैं। किशोरवस्था में आयु बढ़ने के साथ-साथ किशोर अपनी समस्याओं का समाधान करना स्वयं सीखते जाते हैं। फलस्वरूप वे समय व्यतीत होने के साथ-साथ समायोजन में अच्छे और होते जाते हैं।
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- प्रश्न- स्वास्थ्य के सामान्य नियम बताइये ।
- प्रश्न- रक्तचाप' पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- आत्म अवधारणा की विशेषताएँ क्या हैं ?
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- प्रश्न- अन्तरपीढ़ी सम्बन्ध क्या है?
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